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Sunday, September 23, 2012

पवन


सोचे हतप्रभ होके अल्हड़ शीत लहर भी
कहाँ उसे ले आई उसकी प्रीत मेघों से!
झंकृत करती जाए पथ गमन करती वो
मस्त लहराए, टकराए मनमीत पेड़ों से

सुहावने मौसम को सौंपती सुहाना आभास
प्रलोभी व मोहक करती संध्याकाल परिवेश
क्रीड़ारत बालकों को देती सुखद एहसास
पुनर्जीवित करती बुझे जीवन के अवशेष

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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

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