भटकते-भटकते
मंज़िलों तक पहुँच गये रस्ते
गुज़रते-गुज़रते
दिख ही गए सड़क के बच्चे
सरकते-सरकते
उड़ गये पतलून के खरपच्चे
निकलते-निकलते
सूरज आ गया कब का सर पे
संभलते-संभलते
बिखर गये तूफां में पेड़ों के पत्ते
हँसते-हँसते
देखो घिर आये आँसू पलक पे
चमकते-चमकते
बीता उजाला, निकले अंधेरे सच्चे
बिफरते-बिफरते
हो गई सांझ, कोई अब तो हँस दे
--
विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'
(20 नवम्बर 2012)
मंज़िलों तक पहुँच गये रस्ते
गुज़रते-गुज़रते
दिख ही गए सड़क के बच्चे
सरकते-सरकते
उड़ गये पतलून के खरपच्चे
निकलते-निकलते
सूरज आ गया कब का सर पे
संभलते-संभलते
बिखर गये तूफां में पेड़ों के पत्ते
हँसते-हँसते
देखो घिर आये आँसू पलक पे
चमकते-चमकते
बीता उजाला, निकले अंधेरे सच्चे
बिफरते-बिफरते
हो गई सांझ, कोई अब तो हँस दे
--
विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'
(20 नवम्बर 2012)
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