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Sunday, March 31, 2013

केवल चाहने से कौन कभी अपना बना है!

आजकल ज़िंदगी में हर पल कोहरा घना है 
केवल चाहने से कौन कभी अपना बना है!

चल रही हैं सब तरफ दोगलेपन की सियासतें 
दिलों में अब हैं बची सिर्फ नफरतों की रियासतें 

मुश्किल चुप रहना भी पर जग से ये कौन कहे?
धड़कन धधकती आग है, कितना हम मौन रहें?

जाने से पहले मैं तुमको हूँ खत में लिख रहा 
वापस जल्दी न आऊँ तो समझना मेरा रक्त बहा

तुम इस धर्म की, मैं उस जाति का जानवर
मानवता दुर्लभ बहुत, केवल बची है नाम भर

कितना भी रखो दबा के किंतु सच छुपता नहीं
दिन ढल जाता है पर प्यार कभी झुकता नहीं

रूहों का तो अपनी सदा रहेगा साथ, मगर
तुम पास जो आओ मेरे केवल एक साँस भर

विश्वास दिलाता हूँ, बिना लड़े नहीं मैं आऊँगा
मत हिम्मत हारो, संग लेकर तुमको जाऊँगा

--
'हितैषी'

December 29, 2012

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