मन के आँगन को कड़ी धूप ने छुआ है
मैं वही हूँ, गम का आईना नया है
आँचल में सुबह की कैसा आसमां है खुला!
बेबस चाँद निर्दयी सूरज से ढंका है
वो चला गया फिर बाहर से आवाज़ें देके
दिल के अरमां जैसे चीर कोई गया है
कैसे बुझाओगे तुम मुझे कुछ फूँक से!
मैं वही हूँ, गम का आईना नया है
आँचल में सुबह की कैसा आसमां है खुला!
बेबस चाँद निर्दयी सूरज से ढंका है
वो चला गया फिर बाहर से आवाज़ें देके
दिल के अरमां जैसे चीर कोई गया है
कैसे बुझाओगे तुम मुझे कुछ फूँक से!
ये दीया बरसों तूफ़ानों में जिया है
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'हितैषी'
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'हितैषी'
(07 नवम्बर 2012)
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