एक मित्र के लिए -->
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मैं चाहता तो हूँ ये शहर छोड़ कर ना जाऊँ
वक्त को थोड़ा रोक लूँ पर हो नहीं सकता
बंगलूरु परिवार से बिछड़ने से हूँ ज़रा उदास
और तन्हा है दिल मगर रो नहीं सकता
सतायेंगे कुछ चेहरे दोस्तों के, सहकर्मियों के
अगली कुछ रातें चैन से सो नहीं सकता
पिछले दो सालों की अनमोल यादें रहेंगी साथ सदा
कहीं भी मैं जाऊँ चाहे, इन्हें खो नहीं सकता
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'हितैषी'
(28/11/2012)
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मैं चाहता तो हूँ ये शहर छोड़ कर ना जाऊँ
वक्त को थोड़ा रोक लूँ पर हो नहीं सकता
बंगलूरु परिवार से बिछड़ने से हूँ ज़रा उदास
और तन्हा है दिल मगर रो नहीं सकता
सतायेंगे कुछ चेहरे दोस्तों के, सहकर्मियों के
अगली कुछ रातें चैन से सो नहीं सकता
पिछले दो सालों की अनमोल यादें रहेंगी साथ सदा
कहीं भी मैं जाऊँ चाहे, इन्हें खो नहीं सकता
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'हितैषी'
(28/11/2012)
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