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Sunday, May 12, 2013

मेरा लफ्ज़-२ हो उसके होंठों के लिए

गीत लिखने नहीं मुझे रोज़ों के लिए
मेरा लफ्ज़-२ हो उसके होंठों के लिए

क़सीदे पढ़ दूँ उसके दीदार की शान में
इनायत कुछ तो हो सरफ़रोशों के लिये

खरोंच आ जायेगी शायद मेरी बलाओं से उसे
पास जाता नहीं इन्हीं संकोचों के लिये

उसके हुस्न को मोम के साँचे में ढालेगा कौन?
ज़िंदगी कम न पड़ जाये बुततराशों के लिये!

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'हितैषी'


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