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Saturday, May 11, 2013

उद्धरण २


माना हम ज़िन्दगी की किताब में लिखे अतीत को रबड़ से मिटा नहीं सकते.. लेकिन वो कमबख्त पन्ने तो फाड़ के फ़ेंक ही सकते हैं 
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'हितैषी'

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