घर से हम निकल चले
सुमन काँटों-से तन चले
आकाश की पुकार पर
दीप बुझे हैं जल चले
आज युद्ध-वार है
सीने में दहाड़ है
दुश्मनों के रक्त से
धोने खड्ग हम चले
तिलक चढ़ाया लाल आज
बाजू बने हैं काल आज
धीर खूब धर चुके
करने अब विध्वंस चले
समय है प्रमाण का
वीरों के सम्मान का
माँ भारती के चरणों में
होने शहीद हम चले
--
'हितैषी'
सुमन काँटों-से तन चले
आकाश की पुकार पर
दीप बुझे हैं जल चले
आज युद्ध-वार है
सीने में दहाड़ है
दुश्मनों के रक्त से
धोने खड्ग हम चले
तिलक चढ़ाया लाल आज
बाजू बने हैं काल आज
धीर खूब धर चुके
करने अब विध्वंस चले
समय है प्रमाण का
वीरों के सम्मान का
माँ भारती के चरणों में
होने शहीद हम चले
--
'हितैषी'
No comments:
Post a Comment