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Saturday, May 11, 2013

मेरे दर्द देख के आसमां सिमट गया (गीत)


मेरे दर्द देख के 
आसमां सिमट गया 
अश्रु ढलके इतने कि
आईना चटक गया 

विधि बारंबार मुझपे 
धावे बोलती रही 
समय चलता रहा 
और मैं अटक गया 

मोड़ा मुँह साहिलों ने 
लहरें भी क्रुद्ध मिलीं 
तूफां से जो आस बंधी
उसने भी झटक दिया 

शिशिर में धूप से 
ही तो प्यास थी मेरी 
था नियति से बैर पर 
झंझाओं में भटक गया 

आस्था के पुष्प को 
ज्वार तबाह कर चले 

मन-तरु तटस्थ, किंतु  
बहाव में सरक गया

अपने कार्यकाल में 
ऐसी दशा सी बन गई 
निवाले पत्थर रहे 
मैं रक्त से गटक गया

मेरा ही धनुष वो था 
कमान हाथ में रही 
अपने ही तीरों की 
सेज पर लटक गया 

शब्द शब्द लुट गये 
स्वर-ध्वनि बिखर गई 
बुलंदी से अंधड़ों ने 
ऐसा है पटक दिया 

मेरी कटार गिर गई 
कवच औ' भाल छिन गए 
लड़ा निरस्त्र अंत तक, फिर 
काल निमिष सटक गया 

मेरे दर्द देख के 
आसमां सिमट गया 
अश्रु ढलके इतने कि
आईना चटक गया 

--
'हितैषी'

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