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Tuesday, September 3, 2013

यादों का उपवन सींचा है

कतरा कतरा आँसू देकर यादों का उपवन सींचा है
घूमने आता है तेरे नाम का पंछी, ये वो बगीचा है

मैं दरख़्त ज़मीं का प्यारा, और तेरा है आसमान सारा
साथ जुड़ता भी तो कैसे, मेरा ओहदा तुझसे नीचा है

बेज़ुबां इश्क लेता है अंगड़ाई भरपूर तब तब ज़ालिम
खुलता इस दिल में जब भी तेरे ख़्वाबों का दरीचा है

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© विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

*दरख़्त = पेड़
*दरीचा = खिड़की

https://www.facebook.com/VPS.hitaishi/posts/555502764499414

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