ये ज़िन्दगी घरौंदा है रेत का
कभी वक़्त की धारों से
कभी किस्मत के वारों से
टूटता ही रहता है पल पल में
मेरे जीवन का कुछ हिस्सा
और भी महीन टुकड़ों में
और सरपट दौड़ती ज़िन्दगी
इस एहसास तले सिसकती रहती है
कि कब मिलेगी लहर वो
जो साहिल के इस घरौंदे को
करेगी और पक्का
और लिखेगी एक और किस्सा
जीवन के झीने कतरों में
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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'
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