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Friday, July 13, 2012

घरौंदा रेत का


ये ज़िन्दगी घरौंदा है रेत का
कभी वक़्त की धारों से
कभी किस्मत के वारों से 
टूटता ही रहता है पल पल में
मेरे जीवन का कुछ हिस्सा
और भी महीन टुकड़ों में 

और सरपट दौड़ती ज़िन्दगी 
इस एहसास तले सिसकती रहती है 
कि कब मिलेगी लहर वो 
जो साहिल के इस घरौंदे को
करेगी और पक्का
और लिखेगी एक और किस्सा 
जीवन के झीने कतरों में 

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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'
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