MyFreeCopyright.com Registered & Protected

Wednesday, August 29, 2012

दो क़दम

जब रौशनी ही नहीं तो सूरज के जलने का क्या मतलब 
अब इन बाँहों में यूँही पिघलने का क्या मतलब..........
मालूम है जब नहीं तय कर पाओगे मंजिल तक का सफ़र
तो फिर दो कदम यूँही साथ में टहलने का क्या मतलब...
--
दिनेश गुप्ता 'दिन' [facebook.com/dineshguptadin]

=============================

दो क़दम का साथ भी गवारा है हमको 
खुदा ने भी किस दरिया में उतारा है हमको
'मतलब' तो दुनिया की हर बात में है कुछ
तेरा हौले से पुचकारना ही प्यारा है हमको
...
दो जनम का नहीं, दो क़दम का सही साथ, सच्चे
दिल से, हसीं हाथों में हाथ तेरे गवारा है हमको
--
विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

No comments:

Post a Comment