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Thursday, October 18, 2012

दरख्तों से पता लेते रहे

उनके शहर का हम दरख्तों* से पता लेते रहे 
वो हर मोड़ पर हमें मिल कर भी दगा देते रहे 

लोग मोहब्बत की सरहदों पर खता करते हैं 
हम ठहरे मुसाफ़िर, रास्तों से वफ़ा करते रहे 

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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

*दरख़्त = पेड़, tree

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अनजाने शहर में हम दरख्तों* से पता लेते रहे
वो हर मोड़ पर हमें मिल मिल के दगा देते रहे
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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

*दरख़्त = पेड़, tree

shers describe feeling of a wanderer searching for true love


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