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Thursday, October 18, 2012


नुमाइश कुछ कर बहके अंदाज़ों की, मल्लिका-ए-हुस्न!
बाखुदा रुका हूँ तेरे दर पर कारवाँ-ए-जन्नत छोड़कर
--
विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

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