MyFreeCopyright.com Registered & Protected

Saturday, October 27, 2012

ज़िंदगी है इक सफर सुहाना भी

ज़िंदगी है इक सफर सुहाना भी 
ज़िंदगी भीषण समर पुराना भी 

दुःख के गीत यहाँ पर गाना भी 
यूं ही पग-पग मुस्कुराना भी 

काँवर फ़र्ज़ का उठाना भी 
बोझ क़र्ज़ का उतारना भी 

थके रह कर यहाँ जागना भी
सोते में कभी है भागना भी

प्रपंची प्रलोभनों में फिसलना भी
और ठोकरें खाकर संभलना भी

संकट समक्ष अकड़ना भी
उचित अवसरों को पकड़ना भी

समूह संग सफर में बढ़ना भी
है अकेले अब-तब चलना भी

भीड़ से आगे निकल जाना भी
कतारों में खड़े रह जाना भी

रूखी-सूखी खाना भी
कभी जश्न मनाना भी

किसी के लिए मर जाना भी
ज़िंदगी मस्त जी जाना भी

--
'हितैषी'

No comments:

Post a Comment