आज अश्क बरसों बाद लौटे हैं
छुपाने को जिन्हें पहनते मुखौटे हैं
तुम यूं बिना बात घबराया न करो
हम दुखों में भी चैन से सोते हैं!
दिल के दर्द तो बहुत छोटे हैं
हम यहाँ हर पल में कुछ खोते हैं
तुम बेकार कल रूमाल लेकर आ गए
हमने कब कहा कि हम रोते हैं?!
--
'हितैषी'
छुपाने को जिन्हें पहनते मुखौटे हैं
तुम यूं बिना बात घबराया न करो
हम दुखों में भी चैन से सोते हैं!
दिल के दर्द तो बहुत छोटे हैं
हम यहाँ हर पल में कुछ खोते हैं
तुम बेकार कल रूमाल लेकर आ गए
हमने कब कहा कि हम रोते हैं?!
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'हितैषी'
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