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Sunday, November 18, 2012

प्रण करने को पूरा हम

प्रण करने को पूरा हम छोड़ चले सुभीता को
ज्यों तज चले प्रभु राम आज फिर माँ सीता को

चातुर्य स्व-परीक्षण पग-पग पर देय निर्दय होगा
रहेगा एक ही 'अर्जुन', कदापि नहीं एकलव्य होगा 

नहीं शिष्टता अनुसरण सदैव बाधा के संग हो सकता है
रुष्ट श्रीकृष्ण भाँति रण में, क्षणिक, प्रण भंग भी हो सकता है

(क्रमशः)

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'हितैषी'





(मार्च-अप्रैल 2012)

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