जब ढलक पड़े कुछ अश्क आँखों को अलविदा बोलकर
चंद साँसों को ज़िंदा रखा तब उनमें तेरा साया घोलकर
'कुछ तो बचा रहूँ' ये सोच, तुझे दिल से भुलाने वास्ते
घर उजड़े अपने आ गया, तेरा रोशन गलियारा छोड़कर
मैं चल पड़ा अनजान राहों पर, बहुत दूर निकलता गया
तकदीर ने क्यूँ मिलवाया तुझसे फिर से आवारा मोड़ पर?
सह पाता देख कैसे मैं तेरा हाथ किसी और के हाथों में!
चंद साँसों को ज़िंदा रखा तब उनमें तेरा साया घोलकर
'कुछ तो बचा रहूँ' ये सोच, तुझे दिल से भुलाने वास्ते
घर उजड़े अपने आ गया, तेरा रोशन गलियारा छोड़कर
मैं चल पड़ा अनजान राहों पर, बहुत दूर निकलता गया
तकदीर ने क्यूँ मिलवाया तुझसे फिर से आवारा मोड़ पर?
सह पाता देख कैसे मैं तेरा हाथ किसी और के हाथों में!
अब तोड़ चला बंधन सारे ज़िंदगी का किनारा तोड़ कर
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'हितैषी'
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'हितैषी'
(15 नवम्बर 2012)
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