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Tuesday, June 26, 2012

बूँदें


दो ही तरह के सावन हैं जवानी में
सुख औ' दुःख ही मौसम हर कहानी में 
कभी अम्बर से टपकती बूँदें हैं 
कभी आँखों से छलकती बूँदें हैं 
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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी' 
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