शरमाने लगी है अब वो मेरे सामने आने पर
मजबूर किया है मैंने उसे काजल लगाने पर
महफ़िल के बढ़ते शोर में मुझी को सुनती है
नज़र है कि पल पल में मुझको ही चुनती है
शबनम राह तकती है शमां की यूँ हर मोड़ पर
कि बेबस चाँद भी फ़िदा हुआ है आज चकोर पर
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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'
--
06/06/2012
मजबूर किया है मैंने उसे काजल लगाने पर
महफ़िल के बढ़ते शोर में मुझी को सुनती है
नज़र है कि पल पल में मुझको ही चुनती है
शबनम राह तकती है शमां की यूँ हर मोड़ पर
कि बेबस चाँद भी फ़िदा हुआ है आज चकोर पर
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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'
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06/06/2012
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