जब भोर अपने आँचल से
प्रभा छलकाती है
काया की हर इन्द्रिय
पुलकित हो जाती है;
मेरी आनंद के आँगन में
बस एक कमी रह जाती है।
ठंडी पवन तब दिल में
प्रभा छलकाती है
काया की हर इन्द्रिय
पुलकित हो जाती है;
मेरी आनंद के आँगन में
बस एक कमी रह जाती है।
ठंडी पवन तब दिल में
इक सिहरन उठती है
तेरी याद दिलाती है।।
तू जब आती है
बहारों की भीनी खुशबू
चन्दन बिखराती है;
और सांझ ढले कोई कोयल
जब कूक उठाती है
तेरी याद दिलाती है।
निशा की श्यामलता जब
चांदनी में नहाती है
कोई कविता तब दिल से मेरे
होठों पे आती है;
और अधसोई मेरी आँखों में
चेहरा तेरा दिखाती है
तेरी याद दिलाती है।।
तू जब आती है
बहारों की भीनी खुशबू
चन्दन बिखराती है;
और सांझ ढले कोई कोयल
जब कूक उठाती है
तेरी याद दिलाती है।
निशा की श्यामलता जब
चांदनी में नहाती है
कोई कविता तब दिल से मेरे
होठों पे आती है;
और अधसोई मेरी आँखों में
चेहरा तेरा दिखाती है
तेरी याद दिलाती है।।
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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'
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